आर्य और काली छड़ी का रहस्य-14
अध्याय 5
युद्ध क्षेत्र
भाग-1
★★★
आर्य सुरक्षित था। वह आश्रम के कई दूसरे आचार्यों के साथ पीपल के पेड़ के नीचे बैठा था। हिना भी वही पास खड़ी थी। कोई भी किसी से कुछ नहीं कह रहा था। सब बस अचार्य वर्धन के आने का इंतजार कर रहे थे।
आचार्य वर्धन लोहे की सलाखों वाले दरवाजे को बंद कर उन सभी की ओर आए। वह आते ही वहां हीना से बोले “हिना, क्या तुम यहां आश्रम की खतरनाक जगहों के बारे में नहीं जानती। तुम यहां रहते हुए 6 महीने हो गए हैं, और तुम्हें यह अच्छे से पता है कि यहां किले की पास जाना सख्त मना है। यहां खतरनाक जादूओं का इस्तेमाल किया गया जो कुछ भी कर सकते हैं। उनके प्रभाव कई बार मेरे लिए भी हैरानी का विषय होते हैं। तब तुम इस लड़के को किले के पास क्यों लेकर गई...।”
आर्य देख रहा था कि उसके किले के पास जाने का सारा इल्जाम हिना पर आ रहा था। जबकि इसमें हिना कि कोई गलती नहीं थी। किले के पास जाने के लिए तो उसने खुद कहा था। वह बीच में बोला “इसमें इसकी कोई गलती नहीं आचार्य वर्धन.... दरअसल किले के पास जाने के लिए मैंने कहा था। मैं उसे नजदीक से देखना चाहता था, और यह मुझे उस और ले गई।”
आर्य को अपनी बात के बीच में बोलते देख आचार्य वर्धन ने गुस्से से कहा “क्या तुम्हें यहां किसी ने बोलने के लिए कहा... नहीं ना.... तो चुपचाप बैठे रहो।” आर्य ने अपनी आंखें झुका ली और सर नीचे कर लिया। वहीं आचार्य वर्धन उसे कहकर हिना से दोबारा बोले “और हिना, मैंने यह भी सुना है कि कल रात तुम जंगल में भी चली गई थी। तुम जंगल के बारे में भी जानती हो कि वह खतरनाक है।”
“वो...वो...” आचार्य वर्धन गुस्से में थे तो हिना जवाब देने से डर रही थी। “मुझे अपने भाई की वजह से जाना पड़ा। वो जंगल में चला गया था।”
आचार्य वर्धन और ज्यादा गुस्से में लिबलिबा गए “2 दिन में लगातार दो नियमों का उल्लंघन। यह बर्दाश्त से बाहर होगा। वजह चाहे कोई भी क्यों ना हो मगर आश्रम के नियमों का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। हिना, तुम्हें आश्रम के नियमों के उल्लंघन के लिए सजा मिलेगी। और तुम्हारे भाई को भी।” हिना कुछ नहीं बोली। आर्य भी खामोश खड़ा रहा। वही आचार्य वर्धन ने अपनी बात पूरी की “ सजा के तौर पर तुम अगले 7 दिनों तक आश्रम के पुस्तकालय की सफाई करोगी। रोजाना दो घंटे। और तुम्हारा भाई, उससे भी हम जल्दी बात करेंगे।” इतना कहकर आचार्य वर्धन वहां से निकल गए। बाकी के आचार्य भी धीरे धीरे जाने लगे।
सभी के जाने के बाद हिना ने मायुसी के साथ कहा “समझ में नहीं आता यह सभी मुसीबतें मेरे सर पर ही क्यों आती है। मुझे भाई के बारे में अच्छे से आचार्य से बात करनी थी, और अब मैंने बेमतलब उन्हें गुस्सा दिला दिया। वो चाह कर भी अब मेरी बात नहीं सुनने वाले।”
आर्य थोड़ा संकोचते हुए बोला “शायद इसमें थोड़ी सी गलती मेरी है। मुझे माफ कर देना। मुझे तुम्हें किला देखने के लिए नहीं कहना चाहिए था।”
हिना ने सर झटका “आह। तुम यहां नए हो इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं। तुम यहां कुछ भी ऐसा ना करो इसलिए मुझे तुम्हारे साथ छोड़ा गया है। तुम जो भी करोगे उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी बनती है। और मैं बेवकूफ, तुम्हारे एक बार कहने पर ही मान गई। तुम्हें किला दिखा दिया...” इसके बाद उसने झल्लाते हुए कहा “ओह.... मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं? मुझे तो कम से कम नियमों का ध्यान रखना चाहिए था!”
आर्य उसे खुद पर ही गुस्सा निकालता देख रहा था। गुस्से में हिना के पूरे चेहरे पर अजीब से भाव आ गए थे। उसने सर को झटका था तो बाल भी इधर-उधर बिखर गए थे। आर्य ने सांस बाहर छोड़ी और हिना से पूछा “तो अब क्या? क्या तुम्हारे भाई का मसला हल नहीं होगा? लेकिन यह तो और भी गंभीर....”
“हां मैं जानती हूं। मैं जानती हूं यह गंभीर है, मगर अब मैं कुछ दिन तक आचार्य वर्धन से बात नहीं कर सकती। 7 दिन तक किताबे साफ करने की सजा मिली है। शायद जब यह सजा पूरी होगी तो मुझे एक अच्छा मौका मिल जाए उनसे बात करने का। तब तक मैं देखती हूं... करती हुं कुछ अपने भाई का...” इसके बाद हिना वहां से जाने लगी। जाते-जाते वह बोली “ अच्छा मैं तुम्हें अब शाम को तकरीबन 5:00 बजे के आसपास मिलूंगी, शाम को हम युद्ध क्षेत्र जाएंगे। ऐसी जगह जहां आश्रम के योद्धाओं को तैयार किया जाता है।”
“युद्ध क्षेत्र.... क्या यह जगह दिलचस्प है?”
“हां, हद से भी ज्यादा हो। तुम शाम को खुद ही देख लेना।”
हिना इतना कह कर चली गई। उसके जाने के बाद आर्य वहां पीपल के पेड़ के नीचे अकेला ही बैठा रहा। उसने वहां बैठे-बैठे एक बार फिर अपने दाई और देखा। दाईं और मौजूद किले की तरफ। किले को देखते हुए उसने कहा “तुम तो सच में काफी खतरनाक हो। जान जाते-जाते बची है। आज के बाद तो मैं भूल कर भी तुम्हारी और नहीं आऊंगा।” उसने बालों में हाथ फेरे और अपनी कुटिया की तरफ चल पड़ा। अब अगले एक-दो घंटे तक समय व्यतीत करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था। हिना से अगली मुलाकात शाम के 5:00 बजे होनी थी, वह भी एक जगह युद्ध क्षेत्र जाने के लिए।
★★★
शाम के तकरीबन 5:00 बजे आर्य पहले ही वहां झोपड़ी के बाहर खड़ा था। झोपड़ी के बाहर ही उसे हिना अपनी ओर आते हुए दिखाई दी। उसके साथ उसका भाई आयुध भी था। आयुध चुपचाप चल रहा था जबकि हिना के चेहरे के भाव ठीक-ठाक थे।
हिना आर्य के पास आते ही आयुध का परिचय देते हुए बोली “मेरा भाई... इससे तो तुम कल रात मिल ही चुके हो।”
“हां...” आर्य ने जवाब दिया और अपना हाथ आगे बढ़ाया “इसे कौन भूल सकता है। अब तुम्हारे दो दांत कैसे हैं...?” उसने हाथ मिलाते हुए पूछा।
आयुध ने अपने जबड़े पर हाथ लगाया। “मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता।”
हिना उसे कोहनी मारते हुए बोली “मैंने तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा दी है। अगर किसी भी बहन का भाई ऐसी हरकतें करेगा तो वह उसके दांत ही तोड़ेगी। इसलिए यह मत समझना की मैं इसे लेकर किसी भी तरह का पछतावा महसूस करूंगी।” इसके बाद उसने आर्य की तरफ देखा और कहा “चलो, अब हम सब युद्ध क्षेत्र की तरफ चले।”
तीनों ही एक साथ वहां से चल पड़े। इस वक्त काफी सारे विद्यार्थी आश्रम के सामने वाले दरवाजे से बाहर जा रहे थे। हिना आर्य और आयुध भी उस दरवाजे से बाहर गए, जिसके बाद सभी विद्यार्थी वहां अपने दाएं और की दीवार के साथ साथ साथ चलने लगे। सभी आश्रम की दीवार के साथ चलते हुए सामने की किसी बड़ी गोल सरचना की तरफ जा रहे थे।
वह गोल सरचना स्टेडियम की तरह लग रही थी। आर्य जब यहां आया था तो उसका ध्यान उस पर नहीं गया था, यह संरचना आश्रम के दाई और आ जाती थी जो सामने से दिखाई नहीं देती।
हिना बीच रास्ते में चलती हुई बोली “दरअसल आर्य, मैं कुछ सोच रही थी?”
“हां बताओ क्या..?” आर्य ने कहा।
“तुम्हें तो पता है, आज दोपहर को जो भी हुआ उसके बाद मैं अचार्य वर्धन को आयुध के बारे में ठीक से समझा नहीं सकती। वह उसकी समस्या का किसी भी तरह से हल नहीं करेंगे।”
“हां यह तो है। तो तुमने क्या सोचा इस बारे में..?”
“वही बता रही हुं।” हिना सामने की तरफ देखते हुए ही बात कर रही थी “मुझे अपने भाई पर अब बिल्कुल भी विश्वास नहीं है। अगर इसे फिर से मौका मिला तो यह वापस बाहर जाने से नहीं कतराएगा। भले ही इसकी जान ही क्यों ना चली जाए। तो मैं सोच रही थी जब तक मैं आचार्य वर्धन से इसके बारे में ठीक से बात ना कर लूं, तब तक तुम इसे अपने पास रखो। अपनी नजर में और अपनी गिरफ्त में।”
“मैं इसे अपने पास रखुं...!!” आर्य ने आयुध की तरफ देखा। वह उसे घूर घूर कर देख रहा था। “क्या यह मेरे पास रह लेगा?”
“क्यों नहीं..” हिना फौरन बोली “अगर यह रहने से मना करेगा तो दो लगाना इसके कान के नीचे। और हो सके तो जोर से ही लगाना। ताकि कम से कम इसे अक्ल आ जाए।” इसके बाद उसने एक हल्की सांस लेते हुए कहा “अगर यह तुम्हारे पास रहेगा तो मुझे इसे लेकर किसी तरह की फिक्र नहीं रहेगी। यहां आश्रम में कोई भी लड़का लड़कियों के साथ नहीं रह सकता, भले ही वह उसका भाई ही क्यों ना हो। और दूसरे लड़कों में मुझे किसी पर विश्वास नहीं। तुम थोड़े ठीक ठाक लग रहे हो, तो अपने भाई की जिम्मेदारी तुम्हें दे रही हूं।”
आर्य ने एक दफा फिर आयुध को देखा। उसका घूर कर देखना बंद नहीं हुआ था। उसने हिना से कहा “ठीक है अगर तुम यह चाहती हो तो मुझे कोई एतराज नहीं। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हारे भाई का अच्छे से ध्यान रखुं।”
“ध्यान ही नहीं रखना नजर भी रखनी है। और हां, नशा करके सोने वाली नींद में मत सोना। मेरा भाई रात को उठकर भी भाग सकता है।”
इससे पहले आर्य कुछ बोलता, हिना के भाई आयुध ने हिना से कहा “मगर मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं। मुझे इस लड़के के साथ नहीं रहना। मुझे यहां आश्रम में किसी भी लड़के के साथ नहीं रहना। मैं अकेला ही रहूंगा।”
“और वह मैं तुम्हें रहने नहीं दूंगी।” हिना ने अपनी मोटी आंखों से अपने भाई आयुध को घुरा, ऐसा करते ही उसके भाई ने चेहरा घुमा लिया था। “तुम सिर्फ और सिर्फ आर्य के साथ रहोगे। और यह मेरा फैसला है, मेरा आखिरी फैसला। समझ गए ना तुम।”
आर्य देख रहा था कि हिना के रोब का उसके भाई पर खासा असर हो रहा था। वह गुस्से में काफी जबरदस्त तरीके से अपनी बात कहती थी। इतने जबरदस्त तरीके से कि सामने वाला ना चाहते हुए भी उसकी बात मानने पर मजबूर हो जाता था। हिना की बात पर आयुध ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया, मगर उसकी चुप्पी का यही मतलब था कि वह किसी तरह की ना नूकर नहीं कर सकता था। उसकी तरफ से इसे लेकर हां ही थी।
जल्द ही वह लोग चलते चलते स्टेडियम जैसी दिखने वाले ढांचे के पास पहुंच गए थे। वहां पहुंचते ही हिना ने एक गहरी लम्बी सांस ली और उसे छोड़ते हुए बोली “आर्य... यह है हमारा युद्ध क्षेत्र... और मुझे पूरी उम्मीद है... तुमने ऐसी जगह कम से कम अब तक तो अपनी जिंदगी में नहीं देखी होगी।”
हिना की बात सुनकर आर्य ने अपने सामने की तरफ देखा। उसके ठीक सामने युद्ध क्षेत्र का ढांचा था जो काफी विशाल बड़ा और मजबूत था। यकीनन इस तरह का ढांचा उसने अपने जिंदगी में नहीं देखा था।
★★★
दीपांशी ठाकुर
20-Dec-2021 11:13 PM
Good..
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Arshi khan
19-Dec-2021 11:28 PM
Good going
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